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काशी के अष्ट भैरव और उनके मंदिर के बारे में सम्पूर्ण जानकारी।

काशी के अष्ट भैरव और उनके मंदिर के बारे में सम्पूर्ण जानकारी।

काशी के अष्ट भैरव मंदिर

अष्ट भैरव (आठ भैरव) भगवान काल भैरव के आठ स्वरूप हैं, जो कि भगवान शिव का एक रौद्र रूप है । जो सभी भैरवों के प्रमुख व काल के शासक माने जाते हैं। वे आठों दिशाओं की रक्षा एवं नियंत्रण करते हैं ।

अष्ट भैरव किसका प्रतिनिधित्व करते हैं :-

अष्ट भैरव में से पाँच भैरव, पंच तत्वों यथा आकाश, वायु, जल, अग्नि और भूमि का प्रतिनिधित्व करते हैं और अन्य तीन सूर्य, चंद्र व आत्मा का। आठों भैरवों का स्वरूप एक दूसरे से भिन्न है, उनके वाहन व शस्त्र भी भिन्न हैं तथा वे अपने श्रद्धालुओं को अष्ट लक्ष्मी के रूप में आठ प्रकार की संपदाएँ देते हें । भैरव की निरंतर प्रार्थना श्रद्धालु को एक महागुरु बनने का मार्ग प्रशस्त करती है । आठों भैरवों के अलग अलग मूल मंत्र व ध्यान श्लोक हैं ।

श्री भैरव भगवान की आराधना कैसे करें:-

सामान्यतः ये विश्वास किया जाता है कि भैरवों की उपासना करने से समृद्धि, सफलता, सुशील संतान, अकाल मृत्यु से बचाव तथा ऋण मुक्ति व उत्तरदायित्वों की कुशल निर्वहन क्षमता आदि की प्राप्ति होती है। भैरवों के विभिन्न स्वरूप भगवान शिव से विकसित हुए जो कि भैरव के रूप में अस्तित्व में आए। भैरव नाम स्वयं में एक गहरा अर्थ समेटे हुए है। इस नाम का प्रथम खंड अर्थात “भै” यानि भय अथवा दिव्य प्रकाश को इंगित करता है एवं इस नाम से साधक को धन की प्राप्ति होती है। “रव” का अर्थ “प्रतिध्वनि” है जिसमे “र” शब्द नकारात्मक परिणामों एवं प्रतिबंधों को दूर करने वाला है और “व” शब्द अवसरों को उत्पन्न करने का कार्य करता है। कुल मिलाकर, भैरव शब्द यह इंगित करता है कि यदि हम भय का प्रयोग करें तो हम ‘असीम आनंद’ को प्राप्त कर सकते हैं। भगवान शिव के मंदिरों में नियमित पूजा अर्चना सूर्योपासना से प्रारम्भ होकर भैरव वंदना के साथ समाप्त होती है। शुक्रवार की मध्यरात्रि भैरव पूजा के सर्वथा योग्य मानी जाती है।

भैरव की मूर्तियाँ अपना व्यक्तित्व कैसे व्यक्त करती हैं :-

भैरव सामान्यतः उत्तर या दक्षिण दिशा में स्थापित होते हैं। एक देवता के रूप में, भैरव सदैव चार भुजाओं के साथ खड़ी मुद्रा में प्रकट होते है अपने बाएं हाथों में डमरू और फंडा धारण करते हैं और अपने दाहिने हाथों पर त्रिशूल और मुंड धारण करते हैं।कभी कभी भैरव अधिक हाथों सहित प्रदर्शित किए जाते हैं। वह पूर्ण अथवा आंशिक नग्नवस्था में रहते हैं। उनका वाहन श्वान उनके साथ ही रहता है, जो कि मात्र एक वाहन ही नहीं अपितु भगवान भैरव के साथ उनकी भयावह गतिविधियों में उनका सहयोगी भी रहता है। भैरव अपने उभरे हुए दांतों की वजह से भयावह दिखते हैं। उनके गले में लाल फूलों की माला सुशोभित होती है।

1- भीषण भैरव-

भीषण भैरव का मंदिर के 63/28 भूत भैरव ज्येष्ठेश्वर के पास स्थित है। दर्शनार्थी इस मंदिर तक सप्तसागर या काशीपुरा से रिक्शे अथवा ऑटो से पहुच सकते हैं। पूजा पाठ के लिए यह मंदिर सुबह छह बजे से दोपहर दस बजे तक और शाम छह बजे से रात आठ बजे तक खुला रहता है। भीषण भैरव

2- संहार भैरव-

संहार भैरव का मंदिर ए 1/82 गायघाट पाटन दरवाजा के पास स्थित है। इस मंदिर तक मच्छोदरी से रिक्शा द्वारा पहुंचा जा सकता है। मंदिर दर्शन पूजन के लिए सुबह पांच बजे से दोपहर 11 बजे तक और शाम पांच बजे से रात साढ़े नौ बजे तक खुला रहता है। संहार भैरव

3- उन्मत्त भैरव-

उन्मत्त भैरव का मंदिर पंचक्रोशी मार्ग के देवरा गांव में स्थित है। वाराणसी शहर से इस मंदिर की दूरी लगभग दस किलोमीटर है। यह मंदिर दर्शन पूजन के लिए हमेशा खुला रहता है। उन्मत्त भैरव

4- क्रोधन भैरव-

क्रोधन भैरव को आदि भैरव के रूप में भी जाना जाता है। यह मंदिर बी 31/126 कमच्छा स्थित कामाख्या देवी मंदिर के पास स्थित है। दर्शन पूजन के लिए यह मंदिर सुबह पांच से दोपहर 12 बजे तक खुला रहता है। वहीं शाम को चार से रात 12 बजे तक खुला रहता है। मंदिर में नियमित रूप से सुबह और शाम की आरती होती है। क्रोधन भैरव

5- कपाली भैरव-

कपाली भैरव मंदिर 1/123 अलईपुर में स्थित है। यह मंदिर सुबह छह बजे से दोपहर 11 बजे तक और शाम छह से रात नौ बजे तक खुला रहता है। कपाल भैरव को ही लाट भैरव के नाम से भी जाना जाता है। कपाली भैरव

6- असितांग भैरव-

असितांग भैरव का मंदिर के 52/39 महामृत्युंजय मंदिर वृद्ध कालेश्वर के पास स्थित है। इस मंदिर में दिन भर दर्शनार्थी दर्शन पूजन कर सकते हैं। असितांग भैरव

7-चण्ड भैरव-

चण्ड भैरव का मंदिर बी 27/2 दुर्गा कुण्ड पर स्थित दुर्गा देवी मंदिर के पास है। मंदिर दर्शन पूजन के लिए हमेशा खुला रहता है। कैंट से मंदिर तक ऑटो या सिटी बस से करीब बीस मिनट में पहुंचा जा सकता है। चण्ड भैरव

8- रूरू भैरव-

रूरू भैरव का मंदिर बी 4/16 हनुमान घाट पर स्थित है। हनुमान घाट हरिश्चन्द्र घाट के निकट ही है। गौदौलिया चौराहे से मंदिर तक पहुंचा जा सकता है। यह मंदिर सुबह पांच से दोपहर दस बजे तक व शाम को पांच बजे से रात साढे़ नौ बजे तक खुला रहता है।

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