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जानें काशी के प्रथम और अंतिम देव कौन ?

जानें काशी के प्रथम और अंतिम देव कौन ?

*काशीमाहात्म्य कहता है-

काशी में महादेव हैं प्रथम और महादेव ही हैं अंतिम। महादेव ही हैं सनातन धर्म का परम कारण और कार्य। महादेव ही हैं सनातन धर्म के मूल। महादेव से ही धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष है। महादेव ही सभी के परम आश्रय हैं। पुराणों में श्रीहरि विष्णु भी कहते हैं कि काशी में महादेव ही परम आराध्य हैं।*

*अनादि संसार में क्षण भर भी विशेष रूप से विभु शिव ने जिस क्षेत्र का परित्याग नहीं किया वह संसारियों के द्वारा जिसे शव की तरह माना गया ।वहीं पुनः जो रुद्र के शरीर के रूप में यह प्रकट है उसे ध्यान के प्रारम्भ में प्रणाम है फिर उसे ही जाबालादि स्मृति में वाणी से अविमुक्त ऐसा कहा गया है–*

अनादौ संसारे क्षणमपि विशेषेण विभुना न मुक्तं यत् क्षेत्रं कुणपमिव संसारिभिरिदम् ।

नमस्ते ध्यायादौ तदिदमुदितं रुद्रतनुरि- त्यथो जाबालादौ गदितमविमुक्तेति च गिरा ।।

*महादेव की प्रिय नगरी काशी जो साक्षात् शिव स्वरूप है और इस काशी तत्त्व की महिमा भी सनातन है। काशी के कण-कण में महादेव ही विविध रूपों में विराजमान हैं।*

*अविमुक नगरी काशी के वर्णन देवाधिदेव महादेव माता पार्वती से कहते हैं–भूलोक के समस्त क्षेत्रों में काशी साक्षात् मेरा शरीर हैं- सर्वक्षेत्रेषु भूपृष्ठेकाशीक्षेत्रंचमेवपुः।। मेरे क्षेत्र में आये हुए प्राणी की मेरी प्रसन्नता से ही मुक्ति होती है । जगत् जिन जीवों पर मेरी प्रसन्नता होती है, उन्हीं लोगों को मेरे लिङ्ग तथा काशी- क्षेत्र में श्रद्धा होती है–*

मदागतो विमुक्तिस्तु प्रसादादेव मे भवेत्।

 मत्प्रसादस्तु येष्वस्ति जीवेषु त्रिजगत्सु वै ॥

तेषामेव भवेच्छ्रद्धा मल्लित मम तीर्थंके ॥

*जो लोग मेरे पवित्र स्थान पर (काशी में) रहकर मेरी भक्ति करते हैं, जो मेरे भक्तों के लक्षण धारण करते हैं, उन्हीं को मैं मुक्ति का साधन प्रदान करता हूं। मैं उन्हें (मोक्ष) नहीं देता, जो न तो यहां रहते हैं, न मेरे प्रति समर्पित हैं, और न ही उन पर महत्वपूर्ण चिन्ह (त्रिपुण्ड्र, उर्ध्वपुंड्र) हैं। यदि मोक्ष की नगरी काशीवासियों के हृदयों में चमकती है, तो वे मेरे सामने चमकते हैं और मोक्ष की महिमा से आच्छादित होते हैं–*

निवसंति मम क्षेत्रे मम भक्तिं प्रकुर्वते ।।

मम लिंगधरा ये तु तानेवोपदिशाम्यहम् ।।

निवसंति मम क्षेत्रे मम भक्तिं न कुर्वते ।।

 मम लिंगधरा ये नो न तानुपदिशाम्यहम् ।।

काशी निर्वाणनगरी येषां चित्ते प्रकाशते ।।

ते मत्पुरः प्रकाशंते नैःश्रेयस्या श्रिया वृताः ।।

*हे देवि ! मेरे इस काशी क्षेत्र में शास्त्रोक्त व्रत नियम धारण किये हुये मेरे शिवलोक की कामना वाले सिद्ध लोग अनेक प्रकार के लिङ्गों को धारण किये हुये निवास और उपासना करते हैं–*

अस्मिन् सिद्धा सदा देवि मदीयं व्रतमास्थिताः ।

नानालिङ्गधरा नित्यं मम लोकाभिकाङ्क्षिणः ॥

*कई सहस्र शिवलिङ्ग काशी में हैं, किसी भी लिङ्ग का दर्शन-पूजन कर अत्यन्त दुष्कृत कर्म करने वाला मनुष्य भी नरक नहीं देखता है अर्थात् मोक्ष प्राप्ति करता है,इनमें बहुतेरे लिंग भक्ति के मारे दो-दो, तीन-तीन, स्थापित किये गये हैं, किन्तु उनका वर्णन मैं नहीं कर सका, पर श्रद्धापूर्वक उन सबका भी पूजन सर्वथा करना ही चाहिए–*

द्विस्त्रिः कृत्वः स्थापितानि भक्त्या लिङ्गानि कानिचित् ।

न तानि पुनरुक्तानि श्रद्धयाऽर्थ्यानि सर्वतः ॥

नरो न नरकं पश्येदपि दुष्कृतकर्मकृत् ।

 यानि कानि च लिङ्गानि काइयां सन्ति सहस्रशः ॥

*हे प्रिये ! जो कोई इस मर्म को जान जाता है, वह फिर पापों में कभी लिप्त नहीं हो सकता । यह मैं सर्वथा सत्य कहता हूँ और जो कोई मेरे लोक में पहुँचा चाहे, उसे तुरत वहाँ पर ही चला जाना चाहिए–*

एवं यस्तु विजानाति स पापैर्न प्रलिप्यते ।

 सत्यं सत्यं पुनः सत्यं त्रिसत्यं नाऽन्यतः प्रिये।।

शीघ्रं तत्रैव गन्तव्यं यदिच्छेन्मामकं पदम् ।।

*काशीपुरी में मनोहारि सूर्य देव से भगवान आदिकेशव कहते हैं- इस काशीधाम में समस्त कारणों के भी कारण, देवाधिदेव, नीलकंठ, भगवान्, उमापति महादेव ही एकमात्र पूजनीय हैं। यहाँ पर जो मन्दबुद्धि जन भगवान् त्रिलोचन को छोड़ दूसरे किसी देवता का पूजन करता है, उसे दोनों लोचन रहते भी लोचन से हीन ही समझना चाहिए और जो वाराणसी में महादेव का पूजन-अर्चन करते हैं, वे समस्त पापों से छुटकारा गणेश्वर हो जाते हैं–*

देवदेवो महादेवो नीलकण्ठ उमापतिः ।

एक एव हि पूज्योऽत्र सर्वकारणकारणम् ॥

अत्र त्रिलोचनादन्यं समर्चयति योऽल्पधीः ।

सलोचनोऽपि विज्ञेयो लोचनाभ्यां विवर्जितः॥

वाराणस्यां येऽर्चयन्ति महादेवं स्तुवन्ति वै ।

 सर्वपापविनिर्मुक्तास्ते विज्ञेया गणेश्वराः ॥

*सम्पूर्ण काशी निःसन्देह भगवान् विश्वेश्वर का स्वरूप है। प्राणियों के पूर्व पुष्प से हो काशी में श्रद्धा होती है। काशी में श्रुति, स्मृति, पुराण एवं आगम का चिन्तन (कथा) नित्य होता रहता है–*

काशी। सर्वाऽपि विश्वेशरूपिणी नात्र संशयः ।

 तद्भक्त्यानन्ययैव श्रुतमिह तु भवेत् प्राणिनां पूर्वपुण्येः ।

 नित्याः श्रुतिस्मृतिपुराणागमार्थाश्चिरन्तनाः ॥

साभार : अजय शर्मा काशी

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