होली सनातन धर्म का सांस्कृतिक, धार्मिक और पारंपरिक त्योहार है। हिंदू धर्म में प्रत्येक मास की पूर्णिमा का बड़ा ही विशेष महत्व है और यह किसी न किसी उत्सव के रूप में मनाई जाती है। उत्सव के इसी क्रम में होली, वसंतोत्सव के रूप में हर साल फाल्गुन मास की पूर्णिमा के दिन मनाई जाती है। यानी यह त्योहार सर्दियों के अंत और वसंत ऋतु के आगमन का प्रतीक है। पूरे भारत में इसका अलग ही जश्न और उत्साह देखने को मिलता है। होली भाईचारे, आपसी प्रेम और सद्भावना का पर्व है। इस दिन लोग एक दूसरे को रंगों में सराबोर करते हैं। घरों में गुझिया और कई अन्य तरह के पकवान बनाए जाते हैं। लोग एक दूसरे के घर जाकर रंग-गुलाल लगाते हैं और होली की शुभकामनाएं देते हैं। इस साल होली पर पहला चंद्र ग्रहण लगने जा रहा है इसलिए इस त्योहार की रौनक पर इसका प्रभाव पड़ सकता है।
होली 2024: तिथि व मुहूर्त
फाल्गुन शुक्ल पक्ष की पूर्णिमा तिथि प्रारंभ: 24 मार्च 2024 की सुबह 09 बजकर 57 मिनट से
पूर्णिमा तिथि समाप्त: 25 मार्च 2024 की दोपहर 12 बजकर 32 मिनट तक
अभिजीत मुहूर्त: दोपहर 12 बजकर 02 मिनट से दोपहर 12 बजकर 51 मिनट तक
होलिका दहन मुहूर्त : 24 मार्च 2024 की रात 11 बजकर 15 मिनट से 25 मार्च की मध्यरात्रि 12 बजकर 23 मिनट तक।
अवधि :1 घंटे 7 मिनट
रंग वाली होली: 25 मार्च 2024, सोमवार
चंद्र ग्रहण का समय
इस साल सौ साल बाद होली पर चंद्र ग्रहण लग रहा है। इस चंद्र ग्रहण की शुरुआत 25 मार्च की सुबह 10 बजकर 23 मिनट से होगी। वहीं इसका समापन दोपहर 03 बजकर 02 मिनट पर होगा। यह चंद्र ग्रहण भारत में नहीं देखा जा सकेगा, जिस कारण से इसका सूतक काल भी मान्य नहीं होगा।
होली के लिए पूजा सामग्री और पूजा विधि
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होलिका दहन के बाद रंगों का त्योहार होली मनाया जाता है। होली के दिन भगवान विष्णु की पूजा करना बेहद शुभ माना जाता है।
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इसके लिए सुबह उठकर स्नान आदि कार्यों से निवृत हो जाए।
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इसके बाद अपने आराध्य देव और भगवान विष्णु की विधि-विधान से पूजा करें।
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उन्हें अबीर गुलाल और केले व आदि का फल अर्पित करें।
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इसके बाद आरती करें और होलिका दहन की कथा पढ़ें।
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फिर सबसे पहले घर के सदस्यों को रंग लगाए। बड़ों का आशीर्वाद लें।
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इस तरह पूजा संपन्न करें और फिर सबके संग होली खेलें।
इन देशों में भी धूमधाम से मनाई जाती है होली
ये तो हम सब जानते हैं कि होली का त्योहार भारत में धूमधाम से मनाया ही जाता है लेकिन क्या आप जानते हैं कि भारत के अलावा भी ऐसे कई देश हैं, जहां होली को बड़े ही शानदार तरीके से मनाया जाता है। तो आइए जानते हैं कि इस रंगों के त्योहार को भारत के अलावा किन देशों में हर्षोल्लास के साथ मनाया जाता है।
ऑस्ट्रेलिया
ऑस्ट्रेलिया एक ऐसा देश है, जहां भारत जैसे होली का त्योहार मनाया जाता है। लेकिन यह हर साल नहीं बल्कि हर दो साल में एक बार रंगों का पर्व मनाया जाता है। इस पर्व को वाटरमेलन फेस्टिवल के नाम से जाना जाता है। जैसा कि नाम से ही प्रतीत हो रहा है कि यहां के लोग होली खेलने के लिए रंगों का नहीं बल्कि तरबूज का इस्तेमाल करते हैं और एक-दूसरे पर तरबूज फेंकते हैं
साउथ अफ्रीका
साउथ अफ्रीका में भी होली के त्योहार को धूमधाम से मनाया जाता है। यहां भी भारत की तरह होलिका दहन होती है, रंग खेले जाते हैं और होली के गीत गाते हैं। दरअसल, अफ्रीका में रहने वाले कई भारतीय समुदाय के लोग इस त्योहार को धूमधाम से मनाते हैं।
अमेरिका
अमेरिका में होली को ‘फेस्टिवल ऑफ कलर्स’ के नाम से जाना जाता है और यहां भी भारत की तरह धूमधाम से होली खेली जाती है। इस उत्सव के दौरान लोग रंग-बिरंगे कलर्स एक-दूसरे पर फेंकते हैं और नाचते-झूमते हैं।
थाईलैंड
थाईलैंड में होली के त्योहार को सोंगक्रान के नाम से जाना जाता है। यह पर्व अप्रैल के महीने में मनाया जाता है। इस दिन लोग एक-दूसरे के ऊपर रंग के साथ-साथ ठंड़ा पानी भी डालते हैं।
न्यूजीलैंड
न्यूजीलैंड में होली का त्योहार मनाया जाता है और इस फेस्टिवल को वानाका नाम से जाना जाता है। न्यूजीलैंड के अलग-अलग शहरों में इस पर्व को मनाए जाने का रिवाज है। इस त्योहार को मनाने के लिए लोग एक पार्क में इकट्ठे होते हैं और एक दूसरे के शरीर पर रंग लगाते हैं। साथ ही, एक-दूसरे के साथ नाचते गाते हैं।
जापान
जापान में यह मार्च और अप्रैल के महीने में मनाया जाता है। दरअसल इस महीने चेरी के पेड़ में फूल आने लगते हैं और लोग अपने परिवार के सदस्यों के साथ चेरी में बागों में बैठकर चेरी खाते हैं और एक-दूसरे को बधाई देते हैं। इस त्योहार को चेरी ब्लॉसम के नाम से जाना जाता है।
इटली
इटली में भी भारत जैसे होली का त्योहार मनाया जाता है। बस फर्क इतना होता है कि यहां लोग एक-दूसरे को रंग लगाने की बजाए एक-दूसरे पर संतरे फेंकते हैं व संतरे के रस एक दूसरे पर डालते हैं।
मॉरीशस
मॉरीशस में बसंत पंचमी के दिन से शुरू होकर करीब 40 दिन तक होली का आयोजन चलता है। लोग एक-दूसरे पर रंगों की बौछार करते हैं। भारत की तरह भी यहां होली के एक दिन पहले होलिका दहन होता है।
होली से जुड़ी प्रचलित कथाएं
होली से जुड़ी कई प्रचलित कथाएं हैं, जो इस प्रकार है:
भक्त प्रह्लाद की कथा
हिन्दू धर्म के अनुसार, होलिका दहन मुख्य रूप से भक्त प्रह्लाद की याद में किया जाता है। भक्त प्रह्लाद राक्षस कुल में जन्मे थे परन्तु वे भगवान विष्णु के बहुत बड़े भक्त थे। उनके पिता हिरण्यकश्यप, जो राक्षस कुल के राजा था और बहुत ही शक्तिशाली था। हिरण्यकश्यप अपने बेटे की ईश्वर के प्रति भक्ति देखकर बहुत ही क्रोधित होने लगा, उसे अपने बेटे की यह भक्ति अच्छी नहीं लगती थी और इसके कारण हिरण्यकश्यप ने प्रह्लाद को अनेकों प्रकार के जघन्य कष्ट दिए। उनकी बुआ होलिका जिसको ऐसा वस्त्र वरदान में मिला हुआ था जिसको पहन कर आग में बैठने से उसे आग नहीं जला सकती थी। होलिका भक्त प्रह्लाद को मारने के लिए वह वस्त्र पहनकर उन्हें गोद में लेकर आग में बैठ गई ताकि प्रह्लाद को मारा जा सके। लेकिन भगवान विष्णु की कृपा से होलिका उस अग्नि में भस्म हो गई और प्रहलाद बच गया। तब से होलिका दहन पर्व को बुराई पर अच्छाई की जीत के रूप में हर साल बड़े ही धूमधाम के साथ मनाया जाता है।
राधा-कृष्ण की होली
होली का पर्व श्री कृष्ण और राधा रानी के अटूट प्रेम का प्रतीक है। पौराणिक कथा के अनुसार, प्राचीन समय में भगवान कृष्ण और राधा की बरसाने की होली के साथ ही होली के उत्सव की शुरुआत हुई थी। आज भी बरसाने और नंदगाव की लट्ठमार होली विश्व में प्रसिद्ध है और धूमधाम से यहां होली खेली जाती है।
शिव-पार्वती का मिलन
शिवपुराण के अनुसार, हिमालय की पुत्री पार्वती भगवान शिव से विवाह के लिए कठोर तपस्या कर रहीं थीं और भगवान शिव भी तपस्या में लीन थे। इंद्रदेव चाहते थे कि शिव-पार्वती का विवाह हो जाए क्योंकि ताड़कासुर का वध शिव-पार्वती के पुत्र द्वारा होना था और इस वजह से इंद्रदेव व आदि देवताओं ने कामदेव को भगवान शिव की तपस्या भंग करने भेजा। भगवान शिव की समाधि को भंग करने के लिए कामदेव ने शिव पर अपने ‘पुष्प’ वाण से प्रहार किया था। उस वाण से भगवान शिव के मन में प्रेम और काम का संचार होना शुरू हुआ और जिस वजह से उनकी समाधि भंग हो गई। इसके चलते भगवान शिव बहुत अधिक क्रोधित हो गए और अपनी तीसरा नेत्र खोलकर कामदेव को भस्म कर दिया। शिवजी की तपस्या भंग होने के बाद सभी देवताओं ने मिलकर भगवान शिव को माता पार्वती से विवाह के लिए तैयार कर लिया। कामदेव की पत्नी रति को अपने पति के पुनर्जीवन का वरदान और भगवान भोले का माता पार्वती से विवाह का प्रस्ताव स्वीकार करने की खुशी में देवताओं ने इस दिन को उत्सव के रूप में मनाया।