शिव पूजन का सर्वश्रेष्ठ समय है प्रदोष काल
शिव पूजा के लिए प्रदोष काल बहुत पवित्र माना गया है । दिन के अवसान (अंत) और रात्रि के आगमन के मध्य का समय ही प्रदोष काल कहलाता है ।
प्रदोष काल में भगवान शिव करते हैं कैलाश पर नृत्य
ऐसा माना जाता है कि प्रदोष काल में भगवान शिव कैलाश पर्वत के रजत भवन में डमरु बजाते हुए अत्यन्त आनन्दमग्न होकर जगत को आह्लादित करने के लिए नृत्य करते हैं । सभी देवता इस समय भगवान शंकर की पूजा व स्तुति के लिए कैलाश शिखर पर पधारते हैं । सरस्वतीजी वीणा बजाकर, इन्द्र वंशी धारणकर, ब्रह्मा ताल देकर, महालक्ष्मीजी गाना गाकर, भगवान विष्णु मृदंग बजाकर भगवान शिव की सेवा करते हैं । यक्ष, नाग, गंधर्व, सिद्ध, विद्याधर व अप्सराएं भी प्रदोष काल में भगवान शिव की स्तुति में लीन हो जाते हैं ।
भगवान शिव-पार्वती की प्रसन्नता के लिए प्रदोष व्रत
प्रत्येक माह की त्रयोदशी तिथि में सायं काल को ‘प्रदोष’ कहा जाता है। भगवान शिव की प्रसन्नता व प्रभुत्व प्राप्ति के लिए हर महीने के शुक्ल व कृष्ण पक्ष में त्रयोदशी (तेरस) को ‘प्रदोष’ व्रत किया जाता है । शास्त्रों में कहा गया है कि प्रदोष व्रत रखने से दो गायों को दान करने के समान पुण्य फल प्राप्त होता है ।
देवी भागवत में प्रदोष को देवी व्रत माना गया है । उस दिन देवाधिदेव महादेव सायं काल के समय देवी पार्वती को कुशासन पर विराजमान कर उनके सामने देवताओं के साथ नृत्य करते हैं । इसलिए उपवास करके सायं काल में देवी पार्वती की भी पूजा करनी चाहिए ।
प्रदोष व्रत के पुण्य से जन्म-जन्मान्तर तक नहीं होती है दरिद्रता
दरिद्रता और ऋण के भार से दु:खी व संसार की पीड़ा से व्यथित मनुष्यों के लिए प्रदोष पूजा व व्रत पार लगाने वाली नौका के समान है । ‘प्रदोष स्तोत्र’ में कहा गया है—
‘यदि दरिद्र व्यक्ति प्रदोष काल में भगवान गिरिजापति की प्रार्थना करता है तो वह धनी हो जाता है और यदि राजा प्रदोष काल में भगवान शंकर की प्रार्थना करता है तो उसे दीर्घायु की प्राप्ति होती है, वह सदा नीरोग रहता है। राजकोष की वृद्धि व सेना की अभिवृद्धि (बढ़ोत्तरी) होती है ।’
स्कन्दपुराण के अनुसार जो लोग प्रदोष काल में भक्तिपूर्वक भगवान सदाशिव की पूजा करते हैं, उन्हें धन-धान्य, स्त्री-पुत्र व सुख-सौभाग्य की प्राप्ति और उनकी हर प्रकार की उन्नति होती है ।
अलग-अलग वार के प्रदोष व्रत का है अलग फल
जिस भी दिन प्रदोष पड़ता है उसका महत्व बढ़ जाता है । यदि कृष्णपक्ष में सोमवार व शुक्लपक्ष में शनिवार को प्रदोष हो तो वह विशेष फलदायी होता है । अलग-अलग वार की प्रदोष का फल अलग है । अत: जिस भी कामना से प्रदोष व्रत किया जाता है उसी वार की प्रदोष से उसे आरम्भ करना चाहिए ।
—‘सोमप्रदोष’ शान्ति और रक्षा प्रदान करता है ।
—मंगलवार का ‘भौमप्रदोष’ व्रत ऋण से मुक्ति देता है ।
—बुध के दिन प्रदोष व्रत से कामनापूर्ति होती है ।
—बृहस्पतिवार के प्रदोष व्रत से शत्रु शांत होते हैं ।
—शुक्रवार की प्रदोष सौभाग्य, स्त्री सुख और समृद्धि के लिए शुभ होती है ।
—शनिवार का प्रदोष व्रत संतान सुख को देने वाला है ।
—रविवार का प्रदोष व्रत आरोग्य देने वाला है ।
प्रदोष में कैसे करें शिव पूजा
—सूर्यास्त के समय स्नान कर सफेद वस्त्र पहनकर शिवपूजन करें ।
—सबसे पहले उत्तर की ओर मुख करके भगवान उमामहेश्वर का ध्यान कर निवेदन करें—‘भगवान ! ऋण, दुर्भाग्य, दरिद्रता, भय व समस्त पापों के नाश के लिए और समस्त रोगों से रक्षा के लिए आप पार्वतीजी सहित पधारकर मेरी पूजा ग्रहण करें ।’
—भगवान शिव को शुद्ध जल से फिर पंचामृत से स्नान करायें । पुन: शुद्ध जल से स्नान कराकर, वस्त्र, यज्ञोपवीत, चंदन, अक्षत, इत्र, अबीर-गुलाल अर्पित करें । मंदार, कमल, कनेर, धतूरा, गुलाब के फूल व बेलपत्र चढ़ाएं । इसके बाद धूप, दीप, नैवेद्य (पुआ, शक्कर व गुड़ से बने पदार्थ), ताम्बूल व दक्षिणा चढ़ाकर आरती करें । पुष्पांजलि समर्पित करें ।
—भगवान गिरिजापति से इस प्रकार प्रार्थना करें–’हे शंकर ! मैं संसार के दु:खों से पीड़ित एवं खिन्न हूँ, अनन्त चिन्ताएं मुझे घेरी हुई हैं, रोगों से मैं दु:खी हूँ । शंकर ! मुझ पर प्रसन्न होइये । आपकी कृपा से मुझे भी नित्य आनन्द की प्राप्ति हो।’
—धनी व्यक्ति इस प्रकार प्रार्थना करें—‘भगवन् ! आपकी कृपा से मेरे यहां सदा आनन्द रहे । सभी दिशाओं में सुख का साम्राज्य छा जाए ।’
प्रार्थना मन्त्र
‘भवाय भवनाशाय महादेवाय धीमते ।
रुद्राय नीलकण्ठाय शर्वाय शशिमौलिने ।।
उग्रायोग्राघ नाशाय भीमाय भयहारिणे ।
ईशानाय नमस्तुभ्यं पशूनां पतये नम: ।।
—हो सके तो पंचाक्षर मन्त्र ‘ॐ नम: शिवाय’ की एक माला व प्रदोष स्तोत्र का पाठ करें।
—पूजन के अंत में ब्राह्मणों को भोजन व दक्षिणा देनी चाहिए ।