शबरी अपने पुर्व जन्म में परमहिसी नाम की एक रानी थी। एक बार कुम्भ के मेले में परमहिसी रानी और राजा दोने साथ में गए थे। राजा का वहां पर शिविर था। रानी को एक दिन अपने खिड़की से ऋषियों का समूह दिखा, जो की हवन कर रहे थे, और मन्त्रों का उच्चारण कर रहे थे। रानी परमहिसी का मन भी उन ऋषियों के बीच में बैठने का कर रहा था।रानी ने राजा से आज्ञा मांगी। लेकिन राजा ने कहा की आप रानी हैं, इस तरह का व्यवहार आपको शोभा नहीं देता। आप उन ऋषियों के बीच में नहीं जा सकती हैं। परमहिसी रानी अपने कक्ष में जाकर रोने लगी। रात्रि को परमहिसी रानी अपने कक्ष से निकल कर त्रिवेणी तट पर गयी, वहां गंगा माँ से याचना करने लगी। हे माते, अगर मुझे दूसरा जन्म मिले तो, रूपवान और रानी मत बनाना। अब आपमें समाना चाहती हूँ। इतना कहकर परमहिसी ने अपना देह त्याग दिया और जल समाधि ले ली। यही रानी अगले जनम में शबरी के रूप में जन्म लिया अगले जन्म में शबरी रूपवान नहीं थी।