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जब भगवान कृष्ण का दिया 2 पैसा पड़ा, अर्जुन के दिये स्वर्ण माणिक पर भारी।

जब भगवान कृष्ण का दिया 2 पैसा पड़ा, अर्जुन के दिये स्वर्ण माणिक पर भारी।

ॐ श्री परमात्माने नमः
मित्रों नमस्कार ! मैं संजय कुमार प्रजापति नमस्तेऽस्तु डॉट इन वेब पोर्टल पेज पर आप सभी दर्शकों का स्वागत करता हूँ।

एक बार भगवान श्रीकृष्ण और अर्जुन नगर का भ्रमण कर रहे थे । देख रहे थे कि नगर में सब कुशल – मंगल तो है । तभी उन्हें एक ब्राह्मण भिक्षा मांगते हुए दिखाई दिया । ब्राह्मण देवता को भिक्षा मांगते हुए देखकर अर्जुन को उस पर दया आ गई । सोचा, मुझे ब्राह्मण की सहायता करनी चाहिए और उन्होंने उसे स्वर्ण मुद्राओं से भरी एक पोटली भेंट की । स्वर्ण मुद्राओं की पोटली पाकर ब्राह्मण बड़ा खुश हुआ। अर्जुन को धन्यवाद देता हुआ वह सुन्दर भविष्य के स्वप्न संजोने लगा। सपनों की दुनिया में खोया हुआ ब्राह्मण अपने घर लौट ही रहा था, तभी रास्ते में उसे प्यास लगी । पास ही एक कुआँ था अतः अपनी पोटली को एक तरफ रखकर ब्राह्मण ने कुएं से पानी खींचना शुरू किया । तभी दुर्भाग्य से एक लुटेरा (जो काफी समय से मौके की तलाश में उसका पीछा कर रहा था) वहाँ आया और झट से पोटली लेकर भाग गया । ब्राह्मण कुछ करता उससे पहले ही लुटेरा भाग चूका था । रो – धोकर ब्राह्मण फिर से भिक्षा मांगने लगा।

अगले दिन फिरसे श्रीकृष्ण और अर्जुन नगर भ्रमण को निकले । इस बार फिर उन्होंने उस ब्राह्मण को भिक्षा मांगते हुए देखा । आश्चर्य से देखते हुए अर्जुन उस ब्राह्मण के पास गये और भिक्षा मांगने का कारण पूछा । ब्राह्मण ने अपना सारा दुखड़ा सुना दिया । ब्राहमण की व्यथा और वेदना जानकर अर्जुन बड़ा दुखी हुआ । इस बार अर्जुन ने ब्राह्मण की सहायता में एक बेशकीमती माणिक्य भेंट किया । बेशकीमती माणिक्य पाकर ब्राह्मण की ख़ुशी का कोई ठिकाना न रहा । अर्जुन को बहुत – बहुत धन्यवाद देकर वह माणिक्य को सबकी नज़रों से छुपाते हुए वह अपने घर पहुंचा । ब्राह्मण ने सोचा – “ इसे ऐसी जगह छुपाना चाहिए जहाँ यह एकदम सुरक्षित रहे”। अतः उसने अपने घर में रखे एक पुराने घड़े में माणिक्य को छुपा दिया । माणिक्य को सुरक्षित स्थान पर रखकर उसने चैन की साँस ली । दिनभर की दौड़ धुप से वह बहुत थक चूका था अतः “घोड़े बेचकर” सोने लगा । उस समय उसकी पत्नी पानी लेने गई थी अतः यह बात वह उसे बताना भूल गया । दुर्भाग्य से उसी दिन उसकी पत्नी के हाथ से नदी से पानी लेकर आते हुए रास्ते में घड़ा टूट गया । अतः वह वापस लौटी और पुराना घड़ा लेकर नदी पर पानी लेने चली गई । उसे नहीं मालूम था कि इस पुराने घड़े में माणिक्य रखा हुआ है, अतः उसने पानी लेकर धोने के लिए जैसे ही घड़े को उल्टा किया, माणिक्य निकलकर नदी की धार में बह गया । जब ब्राह्मण नींद से जागा तो घड़े को यथास्थान न देखकर अपनी पत्नी से पूछने लगा । जब पत्नी ने सारा हाल बताया तो वह सिर पकड़कर बैठ गया । अपने दुर्भाग्य का रोना रोकर दुसरे दिन फिर से वह भिक्षा के लिए निकल पड़ा ।

अगले दिन फिर जब श्रीकृष्ण और अर्जुन नगर भ्रमण के लिए निकले तो उन्होंने फिर से ब्राह्मण को भिक्षा मांगते हुए दरिद्र अवस्था में देखा । इस बार फिर अर्जुन उसके निकट गया और कारण पूछा तो ब्राह्मण ने सारा वृतांत बताकर अपने दुर्भाग्य का रोना रोया । अब तो अर्जुन ने भी सोच लिया कि इस ब्राह्मण का किस्मत ही खराब है, इसके जीवन में सुख है ही नहीं । तभी श्रीकृष्ण वहाँ आये और उन्होंने ब्राह्मण को दो पैसे भेंट किये । यह देखकर अर्जुन हँसते हुए बोला – “हे केशव ! जब मेरी दी हुई मुद्राएँ और माणिक्य इस अभागे की दरिद्री नहीं मिटा सके तो आपके दो पैसे से इसका क्या भला होगा ?” यह सुनकर श्रीकृष्ण मुस्कुराये और बोले – “ चलो ! इसके पीछे चलकर ही देख लेते है, क्या होता है ?”अब ब्राह्मण बिचारा रास्ते में सोचता जा रहा था कि “ दो पैसे से तो किसी एक व्यक्ति के लिए भोजन भी नहीं आता, पता नहीं प्रभु ने मुझे ऐसा तुच्छ दान क्योंकर दिया होगा ?” ऐसा विचार करके वह जा ही रहा था कि तभी उसे रास्ते में एक मछुआरा दिखाई दिया । ब्राह्मण ने देखा कि मछुआरे के जाल में एक नन्ही मछली फंसी हुई है, जो छूटने के लिए बहुत तड़प रही थी । ब्राह्मण को उस नन्ही मछली पर दया आ गई । ब्राहमण ने सोचा – “ इन दो पैसों से और तो कुछ होना जाना है नहीं, इस मछली की ही जान बचा देता हूँ ।” ब्राह्मण की करुणा जाग पड़ी और उसने मछुआरे से मछली खरीदकर अपने कमंडल में डाल ली और उसे नदी में छोड़ने के लिए चल पड़ा । ब्राह्मण मछली को लेकर बाजार से गुजर ही रहा था कि उसने देखा कि मछली के मुख से कुछ निकला । यह वही माणिक्य का था जो उसने पुराने घड़े में छुपाया था । माणिक्य मिलने की ख़ुशी में ब्राह्मण जोर – जोर से चिल्लाने लगा – “ मिल गया , मिल गया , मिल गया !” तभी संयोग की बात है कि वह लुटेरा जिसने ब्राह्मण की मुद्राएँ लुटी थी, वह उसी बाजार में था । उसने ब्राहमण को चिल्लाते हुए देखा तो सोचा कि “निश्चय ही ब्राहमण ने उसे पहचान लिया है, इसलिए चिल्ला रहा है । अब जाकर ब्राह्मण राजदरबार में उसकी शिकायत करेंगा ।” ऐसी सोचकर लुटेरा भय से कांपने लगा । लुटेरे ने ब्राह्मण से क्षमायाचना करने में ही भलाई समझी । लुटेरा भय से कांपते हुए हाथ जोड़कर ब्राह्मण के पास गया और क्षमा याचना करते हुए सारी मुद्राएँ उसे लौटा दी ।

यह देखकर अर्जुन भगवान श्रीकृष्ण के समक्ष नतमस्तक हो गये और बोले – “ प्रभु ये कैसी लीला है ? जो कार्य मेरी दी स्वर्ण मुद्राएँ और माणिक्य नहीं कर सके वो आपके दिए दो पैसे ने कर दिखाया ।” भगवान श्रीकृष्ण बोले – “हे अर्जुन ! उस समय में और इस समय में फर्क केवल ब्राह्मण की सोच का है । जब तुमने उस निर्धन ब्राह्मण को मुद्राएँ और माणिक्य दिए, तब उसने केवल अपने सुख के बारे में सोचा । किन्तु जब मैंने उसे दो पैसे दिए तब उसने दुसरे के दुःख को दूर करने के विषय में सोचा । हे अर्जुन ! इस संसार का यह अटल नियम है कि जब इंसान केवल अपने बारे में सोचता है तो उसकी स्वार्थी सोच, स्वार्थी मनुष्यों को ही उसकी ओर आकर्षित करती है । इसके विपरीत जब मनुष्य दूसरों के दुःख को दूर करने के विषय में सोचता है तो ईश्वर सहित यह प्रकृति उसके दुखो को दूर करने की चेष्टा करते है ।” प्रत्येक मनुष्य का कर्तव्य है कि इस आध्यात्मिक नियम को हमेशा याद रखे और संसार में सुख और सामंजस स्थापित करने का ईश्वरीय कार्य करता रहे । जब हम दूसरों के बारे में सोचते है तो ईश्वर हमारे साथ होता है ।

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