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महापुरुषों के श्रीमद् भगवदगीता के विषय में जानने योग्य विचार
गीता मे हृदयं पार्थ गीता मे सारमुत्तमम्।
गीता मे ज्ञानमत्युग्रं गीता मे ज्ञानमव्ययम्।।
गीता मे चोत्तमं स्थानं गीता मे परमं पदम्।
गीता मे परमं गुह्यं गीता मे परमो गुरुः।।
गीता मेरा हृदय है। गीता मेरा उत्तम सार है। गीता मेरा अति उग्र ज्ञान है। गीता मेरा अविनाशी ज्ञान है। गीता मेरा श्रेष्ठ निवासस्थान है। गीता मेरा परम पद है। गीता मेरा परम रहस्य है। गीता मेरा परम गुरु है।-भगवान श्री कृष्ण
गीता सुगीता कर्तव्या किमन्यैः शास्त्रविस्तरैः।
या स्वयं पद्मनाभस्य मुखपद्माद्विनिःसृता।।
जो अपने आप श्रीविष्णु भगवान के मुखकमल से निकली हुई है वह गीता अच्छी तरह कण्ठस्थ करना चाहिए।अन्य शास्त्रों के विस्तार से क्या लाभ?-महर्षि व्यास
गेयं गीतानामसहस्रं ध्येयं श्रीपतिरूपमजस्रम् ।
नेयं सज्जनसंगे चित्तं देयं दीनजनाय च वित्तम ।।
गाने योग्य गीता तो श्री गीता का और श्री विष्णुसहस्रनाम का गान है। धरने योग्य तो श्री विष्णु भगवान का ध्यान है। चित्त तो सज्जनों के संग पिरोने योग्य है और वित्त तो दीन-दुखियों को देने योग्य है।-श्रीमद् आद्य शंकराचार्य
गीता में वेदों के तीनों काण्ड स्पष्ट किये गये हैं अतः वह मूर्तिमान वेदरूप हैं और उदारता में तो वह वेद से भी अधिक है। अगर कोई दूसरों को गीताग्रंथ देता है तो जानो कि उसने लोगों के लिए मोक्षसुख का सदाव्रत खोला है। गीतारूपी माता से मनुष्यरूपी बच्चे वियुक्त होकर भटक रहे हैं । अतः उनका मिलन कराना यह तो सर्व सज्जनों का मुख्य धर्म है।-संत ज्ञानेश्वर
‘श्रीमद् भगवदगीता’ उपनिषदरूपी बगीचों में से चुने हुए आध्यात्मिक सत्यरूपी पुष्पों से गुँथा हुआ पुष्पगुच्छ है |-स्वामी विवेकानन्द
इस अदभुत ग्रन्थ के 18 छोटे अध्यायों में इतना सारा सत्य, इतना सारा ज्ञान और इतने सारे उच्च, गम्भीर और सात्त्विक विचार भरे हुए हैं कि वे मनुष्य को निम्न-से-निम्न दशा में से उठा कर देवता के स्थान पर बिठाने की शक्ति रखते हैं | वे पुरुष तथा स्त्रियाँ बहुत भाग्यशाली हैं जिनको इस संसार के अन्धकार से भरे हुए सँकरे मार्गों में प्रकाश देने वाला यह छोटा-सा लेकिन अखूट तेल से भरा हुआ धर्मप्रदीप प्राप्त हुआ है |-महामना मालवीय जी
एक बार मैंने अपना अंतिम समय नजदीक आया हुआ महसूस किया तब गीता मेरे लिए अत्यन्त आश्वासनरूप बनी थी | मैं जब-जब बहुत भारी मुसीबतों से घिर जाता हूँ तब-तब मैं गीता माता के पास दौड़कर पहुँच जाता हूँ और गीता माता में से मुझे समाधान न मिला हो ऐसा कभी नहीं हुआ है |-महात्मा गाँधी
जीवन के सर्वांगीण विकास के लिए गीता ग्रंथ अदभुत है | विश्व की 578 भाषाओं में गीता का अनुवाद हो चुका है | हर भाषा में कई चिन्तकों, विद्वानों और भक्तों ने मीमांसाएँ की हैं और अभी भी हो रही हैं, होती रहेंगी | क्योंकि इस ग्रन्थ में सब देशों, जातियों, पंथों के तमाम मनुष्यों के कल्याण की अलौकिक सामग्री भरी हुई है | अतः हम सबको गीताज्ञान में अवगाहन करना चाहिए | भोग, मोक्ष, निर्लेपता, निर्भयता आदि तमाम दिव्य गुणों का विकास करने वाला यह गीता ग्रन्थ विश्व में अद्वितिय है |-पूज्यपाद स्वामी श्री लीलाशाहजी महाराज
प्राचीन युग की सर्व रमणीय वस्तुओं में गीता से श्रेष्ठ कोई वस्तु नहीं है | गीता में ऐसा उत्तम और सर्वव्यापी ज्ञान है कि उसके रचयिता देवता को असंख्य वर्ष हो गये फिर भी ऐसा दूसरा एक भी ग्रन्थ नहीं लिखा गया है |-अमेरिकन महात्मा थॉरो
थॉरो के शिष्य, अमेरिका के सुप्रसिद्ध साहित्यकार एमर्सन को भी गीता के लिए, अदभुत आदर था | ‘सर्वभुतेषु चात्मानं सर्वभूतानि चात्मनि‘ यह श्लोक पढ़ते समय वह नाच उठता था |
बाईबल का मैंने यथार्थ अभ्यास किया है | उसमें जो दिव्यज्ञान लिखा है वह केवल गीता के उद्धरण के रूप में है | मैं ईसाई होते हुए भी गीता के प्रति इतना सारा आदरभाव इसलिए रखता हूँ कि जिन गूढ़ प्रश्नों का समाधान पाश्चात्य लोग अभी तक नहीं खोज पाये हैं, उनका समाधान गीता ग्रंथ ने शुद्ध और सरल रीति से दिया है | उसमें कई सूत्र अलौकिक उपदेशों से भरूपूर लगे इसीलिए गीता जी मेरे लिए साक्षात् योगेश्वरी माता बन रही हैं | वह तो विश्व के तमाम धन से भी नहीं खरीदा जा सके ऐसा भारतवर्ष का अमूल्य खजाना है |
–एफ.एच.मोलेम (इंग्लैन्ड)
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