महाविद्या माता का एक ऐसा स्वरूप है जो कि 10 महाविद्याओं में नौवें स्थान पर आता है। जब भी गुप्त नवरात्रि का समय आता है उस वक्त अगर माता के इस रूप स्वरूप की साधना और उपासना की जाती है तो अतुलनीय लाभ हमको देखने को मिलते हैं इसके अलावा जो भी व्यक्ति इनकी साधना करता है, उसका पारिवारिक जीवन सुखी रहता है। माता के 10 स्वरूप है जिनको माता सती के रूप माना जाता है उनके इस स्वरुप के माध्यम से हम विभिन्न प्रकार की तांत्रिक सिद्धियों के साथ ज्ञान और वैराग्य दोनों को एक साथ ही प्राप्त करते हैं। दसों महाविद्या स्वरूपों में नवी महाविद्या के रूप में इनकी साधना और उपासना वर्णित मानी जाती है। अगर तांत्रिक सरस्वती की बात की जाए तो देवी! तांत्रिक सरस्वती के रूप में भी जानी जाती हैं। इन्हीं माता सरस्वती जैसे श्वेत रूप वाली हैं। सफेद वस्त्र उनके होते हैं और कमल भी पर विराजमान होती हैं। तभी श्वेत स्वरूप की मानी जाती हैं, लेकिन अगर जब तंत्र के रूप में सरस्वती की बात की जाए तो वह मातंगी मां कहलाती हैं।
माता मातंगी की कथा के विषय में जानते हैं। कथा भगवान शिव और उनकी पहली पत्नी माता सती से जुड़ी है। इनका अगला अवतार माता पार्वती के रूप में पुनर्जन्म हुआ था। एक बार सती के पिता राजा दक्ष ने विशाल यज्ञ का आयोजन किया क्योंकि राजा दक्ष भगवान शिव से द्वेष भावना रखते थे। इसी कारण से वह शिव से द्वेष करते थे और उन्हें अपने किसी भी कार्य में आमंत्रण नहीं देना चाहते थे, लेकिन देवर्षि नारद के बताए जाने पर माता सती अपनी इच्छा से वहां जाने के लिए तैयार हो गई। माता सती यह चाहती थी कि आखिर जिस यज्ञ में संसार के सभी देवी और देवताओं को बुलाया जा रहा है। वहां पर आखिर मेरे पति को क्यों नहीं बुलाया जा रहा है तब उन्होंने अपने पति से इस बात के लिए अनुमति मांगी थी, किंतु उन्होंने मना कर दिया क्योंकि भगवान शिव जानते थे कि अगर किसी भी प्रकार की सती दक्ष के यज्ञ पर पहुंच जाती हैं तो अवश्य ही उन का नाश हो जाएगा। यही विधि का विधान निर्मित था।
लेकिन माता सती ने भगवान शिव की बात को बार बार कहने पर भी नहीं माना। तब शिव भगवान के ऊपर माता सती को भयंकर क्रोध आया और तब उन्होंने अपने 10 महाविद्या स्वरूप धारण किए थे। भगवान शिव को दसों दिशाओं में भागने से उन्होंने रोक दिया था। यह सभी रूप माता काली, माता तारा, षोडशी, भुवनेश्वरी, भैरवी, छिन्नमस्ता, धूमावती, बगलामुखी, कमला और मातंगी स्वरूप है। मातंगी माता उसी वक्त प्रकट हुई थी। मातंगी से तात्पर्य मां दुर्गा के माता सरस्वती स्वरूप से भी माना जाता है। इन्हें हम तांत्रिक सरस्वती नाम से भी जानते हैं, माता का रूप कैसा है? माता रानी एक सोने से सुसज्जित सिंहासन पर बैठी है। उनका रंग गहरा हरा है और उन्होंने लाल रंग के वस्त्र पहने हुए हैं। सोने के कई आभूषण माता के शरीर पर उपस्थित है जिन्हें धारण किए हुए हैं। उनके सिर पर एक मुकुट है। जिस पर चंद्रमा सुसज्जित है, उनके बाल खुले हुए हैं और वह त्रिनेत्र धारी हैं। माता रानी के कई हाथ है। इसमें उन्होंने तलवार फंदा, अंकुश और अभय मुद्रा इत्यादि पकड़ी हुई है। इसके अलावा खड़ग जपमाला पुस्तिका भी वह धारण करती हैं। उन्होंने अपने सामने माता सरस्वती के समान ही रखी हुई है। इसी कारण कला और संगीत की देवी भी मानी जाती हैं। मातंगी माता का रहस्य क्या है? आखिर इनका जन्म कैसे हुआ माता मातंगी। माता सरस्वती का ही तांत्रिक स्वरूप मानी जाती है। माता सती का 1 महाविद्या स्वरुप मातंगी नाम से जाना जाता है। इनका प्राकृतिक कथा इस प्रकार से आती है जिसकी वजह से हम माता मातंगी को जूठन वाला भोग भी लगाते हैं। एक बार भगवान विष्णु माता लक्ष्मी सहित भगवान शिव से मिलने के लिए कैलाश पर्वत पर गए थे ।
तब भगवान शिव माता पार्वती भगवान विष्णु और माता लक्ष्मी ने साथ मिलकर भोजन करने का अपना प्रयोजन बताया था। भगवान विष्णु अपने साथ दुर्लभ और दिव्य भोजन लेकर के गए थे जिससे वह भगवान शिव और माता पार्वती को खाने के लिए देते हैं। कहते हैं जब भगवान शिव और माता पार्वती उस भोजन को खाने लगे तो थाली में से भोजन का कुछ अंश धरती पर गिर गया था। भोजन की उसी झूठे अंश से माता मातंगी का जन्म हुआ था। इसी कारण से माता के इस स्वरूप को हमेशा जूठन का भोग लगाया जाता है।
इसी कारण से इनका एक नाम उच्छिष्ट मातंगिनी भी पड़ा है। यानी जिसे बचे हुए भोजन या झूठे का भोजन लगाया जाए। असल में देवी मां के इस रूप को धारण करने का मूल उद्देश्य यह था कि संसार में जो भी छोटी और निम्न जाति के लोग हैं, उनका रक्षण हो सके और उनकी भी सामाजिक स्थिति को सुधारा जा सके, क्योंकि एक बार ऐसे ही देवराज इंद्र ने चांडालिनी स्त्रियों को कैलाश पर्वत आने से रोक दिया था। हालांकि वह भगवान शिव और माता पार्वती की बहुत बड़ी भक्त थीं, लेकिन इस प्रकार जीवन जीने के कारण और चांडालनी होने के कारण उनको रोका गया। तब माता ने मातंगी स्वरूप में प्रकट होकर उन्हें अपना संरक्षण दिया था और देवराज को दंडित किया था। तब से उन्होंने सभी प्रकार की चांडाल स्त्री शक्ति और श्मशान में वास करने वाली ऐसी शक्तियों को अपने अधीन कर लिया और उन्हें जीवन प्रदान किया उन्हें तंत्र की एक शक्ति के रूप में विकसित किया था। इसी कारण से हम चंडालनी शक्तियों को माता के अधीन पाते हैं। माता मातंगी ऐसे स्वरूप का प्रदर्शन करती है जिसमें हम महावशीकरण की शक्ति प्राप्त करते हैं। इनकी साधना और सिद्धि से हम विभिन्न प्रकार के अद्भुत तांत्रिक कार्य कर सकते हैं। इनका स्वरूप माता सरस्वती के समान है। इसीलिए माता सरस्वती की पूजा के समान ही लाभ साधक को प्राप्त होते हैं। उस व्यक्ति की बुद्धि और विद्या का विकास हो जाता है। उसकी वाणी बहुत मधुर हो जाती है। माता मातंगी के आशीर्वाद से मनुष्य को कला संगीत नृत्य गायन और ऐसी जितनी भी कलाए हैं, उनमें पारंगतता हासिल हो जाती है और इसी तरह के कार्य क्षेत्र में अपना भाग्य बना सकता है।
इसके अलावा मातंगी माता की पूजा करने से किसी भी प्रकार का जादू टोना मायाजाल इत्यादि से छुटकारा पाया जा सकता है। आपके ऊपर अगर किसी ने टोटका या तंत्र का प्रयोग किया है तो माता मातंगी। उससे सदैव के लिए छुटकारा दिला देती हैं। माता मातंगी की पूजा मुख्य रूप से गुप्त नवरात्रि में करने से लाभ प्राप्त होता है। इनके स्वामी मतंग है और वह रूद्र का प्रतीक माने जाते हैं। इन्हें इसीलिए चाण्डालिनी कहा जाता है। आदिवासी जनजातियों की रक्षा के कारण और उनसे शुद्ध होकर उनके कार्य बनाने के कारण ही इन्हें आदिवासियों की माता मातंगी के नाम से जाना जाता है। अगर पति और पत्नी में प्रेम कम हो रहा हो या जीवनसाथी में आपस में प्रेम की कमी हो तो मातंगी साधना बहुत ही अच्छी मानी जाती है। जो भी पढ़ाई के क्षेत्र में आगे बढ़ना चाहते हैं, उनके लिए भी माता मातंगी। बहुत ही अच्छा फल प्रदान करने वाली मानी जाती है इस प्रकार आज मैंने आपको देवी माता मातंगी के स्वरूप के विषय में बताया है। आप अगर इस साधना को करना चाहते हैं तो नवरात्रि गुप्त नवरात्रि शिवरात्रि होली, दीपावली इत्यादि शुभ अवसरों पर शुरू कर सकते हैं। माता मातंगी की कृपा पर बनी रहे।